Sunday, July 26, 2015

सत्ता का खेल - २६.०७.२०१५

 
 
 

सत्ता का खेल  

 
जख्मों को हरा रहने दो,
थोड़ा नासूर और बनने दो
सियासत बनी रहे बदस्तूर,
बस इसका ख्याल रहने दो
...
इस पार हो या सीमा पार,
तल्ख़ मौहाल को रहने दो
रोटी छिनकर अभागों से
बुझती राखों में आग भरने दो
 
हर तरफ रंग-ए-मजहब
का शोर बढ़ते रहने दो
इन फरेबों की खातिर
लाशों को गिरते रहने दो
 
आवाजें आएंगी ठहरने की
इस पार भी उस पार भी
उसे अनसुना कर
खेल को बदस्तूर चलने दो

Saturday, July 25, 2015

आज का मुक्तक २५.०७.२०१५

शहीद चंद्रशेखर आजाद की याद में आज का मुक्तक ,
 
 
काबिल नहीं हैं ये सियार और गीदड़
कि नमन कर सके उन शेरों को,
जिन्होंने बलिदान दिया सिर्फ इसलिए ...

कि स्वराज होगा, कोई गुलाम नहीं होगा
और कोई कत्लखाना नहीं होगा यहाँ
पर अब हर कोई गुलाम है किसी और गुलाम का
स्वराज के नाम पर पार्टी-तंत्र और कॉरपोरेट-तंत्र
और अफ़सोस है कि ये सियार और गीदड़
खा रहे नोच-२ कर लाश ........हाँ जिन्दा लाश को
कि कत्लखाना ही तो है यहाँ हर जगह...हर जगह |

Saturday, July 11, 2015

आज का मुक्तक १०.०७.२०१५

जिन सीनों में कुछ राज दफ़न हों
उन सांसों को खामोश कर दो ,
मगर क्या करें उन आँखों को ,
जो मरने पर भी राज उगल देती है |

Friday, July 10, 2015

आज का मुक्तक १०.०७.२०१५

जो आँखे है दफ़न मगरूर रंगीन चश्मों से,
उन्हें क्या खाक दिखेगा रंग सच्चाई का

आज का मुक्तक ०९.०७.२०१५

वक़्त आखिर तू नाकाफी ही रहा
वक्त के लिए मुझे तैयार करने में

Tuesday, July 7, 2015

सरकार

सरकार

 
हर बार आती एक सरकार,
ना तेरी ना मेरी सरकार,
सरकार तो होती है बस,
सरकार की सरकार |
 
हर दल की है सरकार,
हर टोपी की है सरकार,
बस गुमनाम है उसमे,
हमारे सरोकार की सरकार |
 
हर शोर की सरकार,
हर कौम की सरकार,
बस खौफ में है,
आम आवाज सरकार |