Friday, April 22, 2016

धरोहड़

धरोहड़

हमने खेती करना छोड़ दिया है....की
अब देखा नहीं जाता बर्बाद फसलों का दर्द,
चिपटे पेटों की लपलपाती भूख, 
पसीनों भरे कन्धों का दर्द |

हमने पैसों के पेड़ लगाना शुरू कर दिए हैं...........
ये सोच के की ये पैसा हर चीज को खरीद लायेगा
हर वस्तु, सुविधा और यहाँ तक इन्सान भी
ख़रीदा जा सकता है पैसों से|

पर क्या तुम उस धुप को खरीद पाओगे सूरज से,
क्या ये हवा तुम्हारे पैसों के इशारे पर चलेगी ?
क्या पानी तुम ला पाओगे इन पैसों की गर्मी से
क्या मॉल में उग पायेगी सब्जियां और अनाज

बटोरते जा रहे सम्पति अपनी भावी पीढ़ियों के लिए
जो शायद नहीं जान पायेगी की क्या होता है
कुएं का मीठा पानी, क्या होता है मचान पर सोना,
क्या होता है धरती का आँचल?

क्या खोने की सूची काफी लम्बी है,
छोटी करने की जिम्मेदारी हमारी है
भूत और भविष्य का तो पता नहीं
वर्तमान की जिम्मेदारी हमारी है |



इमेज _ साभार गूगल