Friday, August 20, 2010

Loud voice for Yourself

In this Mansoon season government are coming with two bills :-
1.  Nuclear liability bill
2.  BRAI Bill
                               
1.  Nuclear liability bill:-

In Nuclear liability bill, we want to unlimited liability for operators in the light of Bhopal Tragedy, which is justified. The Committee has accepted some of the changes suggested by Greenpeace, but has ignored unlimited liability. In its current form the bill limits the liability for operator of the nuclear facility and if the impacts of a nuclear accident cross it, then the Indian tax payers will be footing the bill.


Nuclear is risky and the Government should exercise highest caution. The Prime Minister, keen on clearing this bill, needs to know that we want unlimited liability.

Can you write to PM Manmohan Singh asking him to incorporate unlimited liability in the bill?

http://www.greenpeace.org/india/unlimited-liability


2.  BRAI Bill


The Biotechnology Regulatory Authority of India (BRAI) bill has been approved by the Cabinet and will be tabled in the Parliament soon.

The BRAI bill will clear genetically modified (GM) crops overriding the concerns raised by the general public and state governments against GM food. The Cabinet cleared this bill in a hurried and hushed fashion, denying people a chance to voice their opinion.

But there is a way to change this bill. Sonia Gandhi, Chairperson of the National Advisory Council (NAC) can force the Government to re-draft the bill with suggestions from the public. It has been done before and can happen again if the opposition to the bill in its current form is known.

Can you sign the open letter to Sonia Gandhi asking the NAC to make the Government consult people before tabling the bill?

http://greenpeace.in/safefood/change-brai-bill-stop-gm-food-india

Thursday, August 12, 2010

Don't Say Your Caste in Census Counting

We want to say sorry to general public that our protest is not too loud to hear this deaf government. Yesterday GoMs clear the proposal of " Caste based census counting " and give fuel to cast based politics. A lots of people are also agree with this concept.


I am sorry to say them but they must be rethink on this issue because the telling causes behind this issue is not real but they send back our country to 150 years back, when English govt. started to practice this impossible work just to divide us. And the darkest side of the story is that it all happened on the great occasion of 64th anniversary of  our Independence day.

But we don't break we will fight. We need to support from every corner. Now government passed the proposal and as per proposal citizens have to asked their caste on the time of biometric record personally. But due to the our protest and protest from other corner government give the option of claiming ourself as "Castless". I want to say all of you please claim yourselves as "Hindustani" as your caste or otherwise claim yourself "castless"  in the national interest. If you all do this then you see that purpose of political parties are defeated. Because whatever they say, there real objective is to know the number of people cast-wise in each Panchayat, Assembly, Constituency and State for the purpose of doing castbased politics.

My dear friends our motive is nothing but just to try to build a society who aware and take responsibility to bring change rather than only complaining.

Are you are with us ?

Happy Independence Day

Jai Hind

Tuesday, August 10, 2010

क्योंकि, मैं एक आतंकवादी हूँ !

क्योंकि, मैं एक आतंकवादी हूँ !

देखा मैंने एक सुंदर जगह,
देखकर हुआ बड़ा परेशान |
खेलते बच्चों को वहां देखा
और मेरा खून खौल उठा |

गति को मैं पसंद नहीं करता,
शांत कर देता हूँ उसे !
क्योंकि मैं एक आतंकवादी हूँ |

उड़ती चिड़ियों को देखा,
और परों को कट दिया,
धरती पर गिरा पाकर
अपार ख़ुशी पाऊं मैं |

मैं एक जेहादी हूँ,
जो खेलता होली खून से |
क्योंकि मैं एक आतंकवादी हूँ |

तैरती मछलियों को देखा,
और मैंने उसे पकड़ लिया |
वह तड़पकर मरने लगी
और मैं हँसता रहा |

मैं भी हँसता हूँ|
पर दूसरों को रुलाता हूँ |
क्योंकि मैं एक आतंकवादी हूँ |

दौड़ते मृग को देखा ,
शिकार बना वह मेरा |
करुण दृश्य था वह
पर, मैं गर्वित था |

हरे रंग को
लाल कर देता मैं |
क्योंकि मैं एक आतंकवादी हूँ |

चिट्टियों को मारना चाहा,
पर उनकी एकता ने डरा दिया,
उन्होंने मुझे कट खाया
व मैंने उसपर तेजाब दल दिया |

हार नहीं सकता मैं,
अल्लाह का सेवक मैं
क्योंकि मैं एक आतंकवादी हूँ |
मैंने एक इन्सान को देखा
उसे डराना चाहा
पर उसके तेज़ ने
मुझे डरा दिया |

मेरी भी मौत हुई
पर कोई रोया नहीं
क्योंकि मैं एक आतंकवादी हूँ |

मैं अपने आका के घर गया
मेरी जगह कोई और था
आका ने उसे भी मंत्र दिया
और आँखों में अंगार भर दिया |

वह भी मेरी तरह बन गया
उसे भी मेरी मौत मिलेगी
क्योंकि वह भी एक आतंकवादी बना है |

अब समझ गया में
क्यों बना में आतंकी ?
जेहादी के रूप में
एक हैवान बना में |

क्योंकि वह भी भड़का मेरी तरह
चल पड़ा है कहीं खून बहाने
क्योंकि वह भी एक आतंकवादी है |

पाशविक शक्तियों के सामने,
झुकता मानवता का स्वर
तीनों बड़े आतंकवादी हैं,
 ईर्ष्या - द्वेष व लोभ |

इन्हें किसी ने नहीं पहचाना
दिलों में बसाया इसे सबों ने
इसलिए सब  आतंकवादी हैं |


समाप्त

Saturday, August 7, 2010

हिंद-स्वराज

हिंद-स्वराज

स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर exam की मारा-मारी के बाबजूद मन बात करने से अपने आपको रोक नहीं पा रहा है | अभी गत दिनों 'सबल भारत' के कार्यक्रमों में सक्रिय भागीदारी के दौरान मेरी मुलाकात श्री अशोक जी से हुई | उन्होंने मुझे गाँधी जी की पुस्तक 'हिंद-स्वराज' पढने के लिए कहा |


विचारणीय तथ्य यह है की इस पुस्तक के पढने से पहले बापू के प्रति में ज्यादा समर्पित भावना नहीं रखता था और देश की विभाजन और अन्य तथ्यों के लिए उन्हें जिम्मेद्दार मानता था | ऐसा होना  स्वाभाविक भी था क्योंकि  ये सरे विचार सुनी-सुनाई बैटन पर आधारित थी |

नसीब की बात थी की श्री अशोक जी से वार्ता-लाप के कुछ दिनों बाद दिल्ली पब्लिक पुस्तकालय में उक्त पुस्तक, जो की बिलकुल नई-२ आई थी, मुझे मिली | ७८ पेजों की यह पुस्तक बापू ने १९०१ में लिखी थी और वो भारत का कैसा स्वराज चाहते थे यह एक बड़े ही अनोखे अंदाज में बताया था | पुस्तक पढने से पहली बार में बापू के वास्तविक सोच से अवगत हुआ और मैंने अपने-आप में बापू के प्रति  अपने पूर्व-विचारों के लिए ग्लानी महसूस की |

आखिर क्या था इस पुस्तक में !

पुस्तक में था एक दूरदर्शी सोच, जो की हमारे आज के नेतृत्व में बिलकुल नहीं है | और जब में आज को देखता हूँ तो मुझे एहसास होता है वो कितने सही थे | सबसे पहले उन्होंने अंग्रेजों को नहीं उनकी सभ्यता को खतरनाक बताया और साफ-साफ उन्होंने लिखा की अंग्रेजी सभ्यता किस हद तक खतरनाक है | उन्होंने कहा की " हमें कोई आपत्ति  नहीं है, आप हम पर बेशक  राज करें लेकिन आपको हिन्दुस्तानी सभ्यता में अपने आपको ढालना होगा , आपको राज हमारे हिसाब से करना होगा"| वहीँ दूसरी और उन्होंने जनता से इस अंग्रेजी सभ्यता के बुराइयों से बचने को कहा और कहा हमारी पारंपरिक सभ्यता ही मानव-कल्याण का  एकमात्र और अंतिम उपाय है |

आधुनिक-शिक्षा पर कटाक्ष करते हुए उन्होंने इसे सिर्फ अक्षर ज्ञान कहा और का यह सिर्फ गुलामी की तरफ ले जाने का साधन है | इसी तरह उन्होंने अंग्रेजी चिकत्सा पद्धति, वकालत, रेल, ब्रिटिश संसद हरेक की निंदा की | और जब में आज के सन्दर्भ में अपनी देश के शिक्षा-व्यवस्था, globlisation , MNCs कंपनियों, विज्ञान के आधुनिक प्रयोग, हमारी संसद की ओर देखता हूँ तो बस यह मुह से निकलता है बापू तुम कितने सही थे |

सबसे बड़ा प्रश्न यह है की बापू के नाम पर गद्दी सभालने वालों ने उनकी सोच का किस-तरह गला घोटा, उस पर उँगलियाँ उठाने के लिए कोई नहीं आया और आज हम उस जगह पहुँच गए जहाँ से अभिमन्यु की तरह निकलने का कई रास्ता नहीं दिखा रहा है |

सबसे पहला प्रश्न यह है की क्या हम स्वराज का मतलब समझते हैं ? क्या हम १९४७ में वाकई में आजाद हुए या सिर्फ वो सत्ता का हस्तांतरण था? हमारा भविष्य क्या है? क्या हम वाकई आजाद हैं अपने निर्णय के लिए? क्या हम सिर्फ एक मशीन बनकर रह गए हैं ? क्या हमारी आने पीढ़ी हमारी इस उदासीनता के लिए हमें क्षमा करेगी ? क्या 'हिंद-स्वराज' हमारे पाठ्यक्रम का हिस्सा नहीं होना चाहिए था? इन सारे प्रश्नों पर विचार जरुरी हैं | और आप सभी से आग्रह करता हूँ की हिंद-स्वराज की इस पुस्तक को स्वंत्रता-दिवस के अवसर पर जरुर पढ़ें और इक नये डगर को बनाने की लिए चले, जो की हमें परंपरा और संस्कृति से जोड़ता है और हमें गर्वान्वित करता है|

जय हिंद