भले ही था एक बूंद प्यार का मेरे पास,
पर कतरा-२ उस बूंद का अर्पण था तुझे,
पर पता नहीं, कैसे प्यासे रह गए तुम,
उससे जो मधुशाला की प्यास बुझा गया|
पर कतरा-२ उस बूंद का अर्पण था तुझे,
पर पता नहीं, कैसे प्यासे रह गए तुम,
उससे जो मधुशाला की प्यास बुझा गया|
- पथिक (२६.०६.२०१५)