चिंतन : नये साल पर
और स्वागतम नव-वर्ष |
हर बार कुछ बंधती आशाएँ नये साल से,
सोचते हैं, इसबार सब अच्छा ही होगा |
गत वर्ष की कठोर यादों को
भूल जाते नव-वर्ष के कोमल स्वप्नों मैं |
फिर वह नव-वर्ष भी खो जाता,
गत वर्ष बन अतीत के पन्नों मैं |
और, एक नव वर्षा पुनः आता,
वाही आशाएँ, वही सपने लेकर |
हम हर बार सपने बुनते
और हर बार उसे टूटते देखते |
सपने अपने नहीं होते |
पर, क्या हम गलत हैं ?
आशा का दीपक ही,
हमें जीवन जीने देता |
बगैर इसके कैसे जी सकते हम ?
हाँ, हम सही हैं |
पर, गलत भी हैं,
हम सपने बुनते,
उसे संभव नहीं करते |
इतिहास तो लिखते रहे,
पर सबक लिया क्या उससे |
भविष्य और अतीत मैं खोकर
बर्बाद करते वर्तमान को |
हमें आगे तो बढ़ना चाहिए,
पर, सावधान भी होना चाहिए
क्या हमारी राहें सही है ?
क्या हम भटके तो नहीं हैं ?
सोचकर दर्द हुआ दिल को,
काश ! शुरू से जी सतर्क रहते,
तो ऐसी स्थिति नहीं आती,
और हम नहीं पछताते |
अभी भी क्या कुछ बिगड़ा है |
बहुत कुछ करना है अभी |
बहुत कुछ सीखना है हमें |
व मंजिल को पाके रहना है |
सामना करना है पर्वतों से,
निरंतर विशाल होते बादलों से,
घने-से-घने कोहरों से,
निराशा के अथाह समंदर से |
वज्रपात करेंगे पर्वतों पर,
पवन बन बादलों को हटाएगें ,
धैर्य से पर करेंगे निराशा को |
पूर्वजों की आन बनाये रखना है |
सर हिमालय का उठाये रखना है |
गंगाजल को पवित्र बनाए रखना है |
भारत भूमि को अखंड बनाए रखना है |
देखो ! कह रहा है यह नया साल,
सुनों ! समय की यह आवाज,
आहा ! बसंत की पलके खुल रही है |
समेटो | ज्ञान का कपट खुल रहा है |
समाप्त
नव-वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें
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