मुंशी प्रेमचंद जी के ही तरह
गजानन माधव "मुक्तिबोध" को भी शोहरत मरणोपरांत ही मिली. वामपंथी
विचारधारा के इस कवि की लेखनी से नयी कविताओं की एक अलग से ही धारा चल पड़ी थी
.............जो दुर्भाग्य से असमय ही बंद हो गयी. कोटि-२ भावभीनी श्रधांजलि
गजानन माधव "मुक्तिबोध" की याद
में मेरे भाव कुछ इसतरह से निकले :-
याद आएँगी तुम्हारी पंक्तियाँ
याद
आएँगी तुम्हारी पंक्तियाँ
जिंदगी की कठोरता व् संघर्ष को बयां करती पंक्तियाँ
अँधेरे में अपने अंतर्मन को टटोलती पंक्तियाँ
पूंजीवाद के बैचन चीलों से लडती पंक्तियाँ
तुम्हारी ही लेखनी थी जो कह पाई
की चाँद का मुंह टेढ़ा है
लेकिन क्यों तुम चुप हो गए
कल था या आज हो ...
जरुरत थी तुम्हारे थापों की
जो हमें लड़ना सिखाती
उठाना सिखाती और फिर
सिखाती टटोलना अपने ही अंतर्मन को
सृजनशील स्वर में मरण -गीत गाने वाले कवि
तुम मर नहीं सकते तुम रहोगे जिन्दा
हमेशा हमेशा और हमेशा ...............
जिंदगी की कठोरता व् संघर्ष को बयां करती पंक्तियाँ
अँधेरे में अपने अंतर्मन को टटोलती पंक्तियाँ
पूंजीवाद के बैचन चीलों से लडती पंक्तियाँ
तुम्हारी ही लेखनी थी जो कह पाई
की चाँद का मुंह टेढ़ा है
लेकिन क्यों तुम चुप हो गए
कल था या आज हो ...
जरुरत थी तुम्हारे थापों की
जो हमें लड़ना सिखाती
उठाना सिखाती और फिर
सिखाती टटोलना अपने ही अंतर्मन को
सृजनशील स्वर में मरण -गीत गाने वाले कवि
तुम मर नहीं सकते तुम रहोगे जिन्दा
हमेशा हमेशा और हमेशा ...............
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