अंशु सचदेवा को श्रधांजलि और तमाम जुगनुओं को समर्पित कुछ पंक्तिया
जुगनू
अमावस्या से लडती एक जुगनू,
जो उम्मीद है हर कोने की,
कि वो कोना भी रौशन होगा ,
भले ही पल दो पल के लिए |
आज वो जुगनू हार गयी है,
अपनी ही अमावस्या से ,
और भूल चुकी अपने अन्दर के जुगनू को
और उन तमाम कोनो के विश्वास को |
या फिर मान बैठी है कि
उसकी ये जुगनू की छोटी रौशनी ,
नाकाफी है अपनी अमावस्या के लिए,
और हर कोने तक पहुचने के लिए |
इसलिए गयी है सूरज को लाने,
या फिर पूनम की चंदा को,
ताकि फिर किसी जुगनू को,
हारना ना पड़े अपनी अमावस्या से |
लेकिन वो जुगनू भूल गयी कि ,
सूरज भी कभी एक चिंगारी ही रहा होगा,
और पूनम भी कभी अमावस्या ही रही होगी ,
लेकिन जुगनू, जुगनी ही रही होगी |
एक आशा की जुगनू ,
जो याद दिलाती है दूसरी जुगनू को,
कि तुम्हे चमकना ही होगा तब तक,
जब तक भोर ना होगी............भोर ना होगी |
- सत्येन्द्र कुमार मिश्र 'पथिक'