रोटी और शांति
एक दिन तो आएगा,
जब किसान बोयेगा सिर्फ अपने लिए
और सिर्फ अपने बच्चों के लिए|...
और उस दिन
हर कोई किसान होगा,
छोडकर दलाली, ठेकेदारी, उपदेश
क्योंकि अब सबको चाहिए रोटी,
जो उन्हें खुद बोनी है अपने पसीने से
और उस दिन होगी शांति
और बंदूके हो जायेगी खामोश
दुरी नहीं रहेगी इंसानों में,
क्योंकि तब सबका पसीना बहेगा
खेतों में और सभी को पता होगा
दर्द दुसरे कन्धों का
और मतलब चूल्हा बंद होने का |
जब किसान बोयेगा सिर्फ अपने लिए
और सिर्फ अपने बच्चों के लिए|...
और उस दिन
हर कोई किसान होगा,
छोडकर दलाली, ठेकेदारी, उपदेश
क्योंकि अब सबको चाहिए रोटी,
जो उन्हें खुद बोनी है अपने पसीने से
और उस दिन होगी शांति
और बंदूके हो जायेगी खामोश
दुरी नहीं रहेगी इंसानों में,
क्योंकि तब सबका पसीना बहेगा
खेतों में और सभी को पता होगा
दर्द दुसरे कन्धों का
और मतलब चूल्हा बंद होने का |
पर मुझे डर है की
इससे पहले होगा एक रक्तपात .....
सत्ता के लिए नहीं, रोटी के लिए
और रोटी उगाने वालों से
रोटी छिना जायेगा बन्दुक के दम पर|
धीरे-२ रोटी बनाने वाले बन्दुक पकड़ेंगे
और भूलते जायेंगे रोटी बनाना
परिणाम होगा सिर्फ रक्तपात सिर्फ रक्तपात
इतना की इन्सान और जानवर में भेद मिट जायेगा
और तब होगी शांति हमेशा के लिए |
इससे पहले होगा एक रक्तपात .....
सत्ता के लिए नहीं, रोटी के लिए
और रोटी उगाने वालों से
रोटी छिना जायेगा बन्दुक के दम पर|
धीरे-२ रोटी बनाने वाले बन्दुक पकड़ेंगे
और भूलते जायेंगे रोटी बनाना
परिणाम होगा सिर्फ रक्तपात सिर्फ रक्तपात
इतना की इन्सान और जानवर में भेद मिट जायेगा
और तब होगी शांति हमेशा के लिए |
पर क्या भगवान तब तक इन्सान बनाता रहेगा ?
- पथिक (२४.०८.२०१५)