Thursday, August 20, 2015

मुहब्बत की सच्ची इबारत

मुहब्बत तो मुहब्बत ही होती है लेकिन
फिर भी फर्क है जमीं - आसमां का ...

एक बादशाह के मुहब्बत में
और एक आदमी के मुहब्बत में |

 
भले ही एक सातवाँ अजूबा हो,
पर दूसरा तो मिसाल है कि
आसमां को जमीं पर लाया जा सकता है,
बशर्ते लाने वाला होना चाहिए |

 
मुमताज को भी जलन होगी ,
फाल्गुनी बनने की,
जिसकी याद के आसुओं से
दशरथ ने पहाड़ तक को काट दिया |

 
ये इबारत है इन्सान की फौलादी इक्षाशक्ति की
जिसने पहाड़ को झुकना सिखा दिया
ये इबारत है मुहब्बत की जो कहीं बेहतर है
लैला-मजनूँ और हीर -रांझो की कहानियों से |
 
- पथिक (१९.०८.२०१५)

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