शैतान की भीड़
क्या मालदा.......क्या पूर्णिया ........क्या दादरी
क्या २५०००० लोग और.......... क्या २५० लोग
क्या वामपंथ ...............क्या दक्षिणपंथ
क्या मुस्लिम तुष्टिकरण और क्या हिन्दू अतिवाद
ये भीड़ पता नहीं कहाँ से आई है
इल्म से मरहूम इस भीड़ को
ना जाने कौन सी अफीम चटाई है जो
ये अपने ही घरों में आग लगा रहे हैं
बढ़ रही हैं ये आग की लपटें ........
गिर रही है लाशें इंसानों की .........
उठ रही है खुदाई धरती से ........
और तमाशबीन है कुर्सी ...........
बस चमक रही है निगाहें ........
कुर्सी पर बैठे इन गिध्धों की और
सियारों की और
भेड़ की खाल ओढ़े भेड़ियों की
ए खुदा ......तू सूरज के साथ में
अपने इल्म की रौशनी भेज यहाँ
अपने उन बन्दों के लिए
जो तेरे नाम पर शैतान बन बैठे हैं
कितना अच्छा होता इल्म भी हमें
चाँद-सूरज की रौशनी से मिलती
बारिश की बूंदों से मिलती और
फूलों की खुशबुओं से मिलती .......
ताकि कोई शैतान तेरे नाम पर
तेरे बन्दे को तेरे बन्दे के खिलाफ
तेरे उसूल के खिलाफ
इस वहशीपन को पैदा ना कर पाता
या तू हमें फिर जानवर बना दे
जो जिन्दा रहने की जंग में
एक –दुसरे को मारते रहें ....लेकिन
बंद कर इस वहशीपन को |
पथिक (०८.०१.२०१६)
पथिक (०८.०१.२०१६)