इस हफ्ते चार मित्रों का प्रेम-विवाह यथासंभव कोशिश के बाबजूद टूटता देखकर मूड ख़राब हो गया है| हम लोग जरुर उस समाज का निर्माण कर पाएंगे जहाँ............हम अपने बच्चों की ख़ुशी महज परंपरा और समाज के नाम पर बलि नहीं होने देंगे| जो कष्ट हमारे इन मित्रों को हो रहा है.............वो अगली पीढ़ी को नहीं होने देंगे|
दिलजले दोस्तों के दर्द के नाम चंद पंक्तियाँ :-
"बेबस"
क्या फोड़ दूँ इन नयनों को ,
जिसने ये नामुमकिन सपने देखें ,
या फिर कोसूं अपने मोह को ,
जो भूलता नहीं अपने को |
या आग लगा दूँ इस दुनिया को
इस समाज को, इस मज़बूरी को
या तोड़ दूँ सब माया-मोह के बंधन,
एक नए माया-मोह के लिए |
शर्म आती है अपनी कायरता पर,
और अपनी भगोड़ेपन पर |
और शर्म आती है अपनी औकात पर
जो अपने औकात से बढ़के बात करता था|
हाय विधाता मेरी किस्मत क्या लिखी
मैंने रुक्मणी मांगी थी, राधा नहीं |
किसी का हाथ अपने हाथ माँगा था ,
पर अपनों का हाथ भी सर पर माँगा था |
- सत्येन्द्र कुमार मिश्र "पथिक" (१८.०५.२०१५)
इमेज के लिए साभार गूगल
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