तो आज इसी कड़ी में प्रस्तुत है आप सब के समक्ष शीर्षक कविता "संध्या" | जो दिनांक २८/११/२००१ को संध्या के समय मेरी भावनाओं का अक्षर रूप है |
संध्या
यमुना के आगोश में सूर्य,
शीतल हो खिल उठा |संगीत छोड़ते खग,
संध्या के मंडप में|
चकोर को मिली चाँदनी,
साथ में बारात सितारों की|
व विदाय लेता रवि उनसे,
संध्या की डोली में |
बसेरे पे लौटते दम्पति खग,
घर को लौटते हम,
शांत होता कोलाहल,
संध्या की बेला में |
मिलन का सन्देश लाती संध्या,
ताज को चार चाँद लगाती संध्या,
चिंता के कशमकश से मुक्त संध्या,
प्रकृति का अनुपम क्षण संध्या |
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