दिनांक २२/१२/२००१
आओ पूर्ण करें दायित्व अपना
बलिदान की मिट्टी में,
पवित्र कर्म की शक्ति से,
जन्म दिया था एक पौध को |
उस संजीवनी के प्रकाश से,
दुःख का कोहरा हटने की,
उम्मीदें जागने लगी |
मानो अमावस खत्म हो गई हो,
और पूनम का चाँद सर पर हो,
जिसे अनंत निगाहें देख रही है |
पर उन्हें क्या पता था !
की राहू भी तैयार है,
सूर्य-ग्रहण हेतु |
हमें मिला था, एक दायित्व,
उस पौध को पेड़ बनाने का,
और उन्नत फलों को बाँटने का |
हमें उसमे श्रम का खाद डालकर,
और ज्ञान की सिंचाई से,
शांति का एक वट-वृक्ष बनाना था |
वे बाड लगाकर सो गए,
और कुत्तों के हाथों सौपं गए |
काश! पहचान पाते बिल्लिओं को |
हिंसा की आंधी से ,
डरे उस पेड़ को,
अपनों ने काटना शुरू किया |
भेद-भाव की विशाल झाड़ी,
धार्मिक-सदभावना के पेड़ को,
चारों तरफ से घेरने लगे |
अरे कृषक !
उर्वरक की सफेदी में,
भूल गए गोबर को |
अरे चरवाहे !
दो पलों के स्वार्थ में आकर,
नाश कर रहे इस चारागाह को |
अरे माली !
पुष्पों के इत्र के लिए,
वीरान कर रहे इस बगीचे को |
अरे कालिदास !
दल वही कट रहे,
जिस पर बैठे आप |
आओ , हम सब हों एकजुट,
मिलकर सोंचे और विचारें,
डाले नजर मंजिलों पर |
करें हम वो सभी कार्य,
जो हमने नहीं किया,
व जो आगे करना है |
देखों हमसे पूछ रहा लालकिला,
हिंद की लहरों ने है याद किया,
और बढ़ा रहा उत्साह हिमालय |
आओ, उखाड़ फेंकें इन झाड़ों को,
और सुमनों की कतार लगायें ,
और एकता की बाड लगायें |
आओ सुरक्षित कल के लिए,
अतीत के प्रकाश से,
वर्तमान पर नजर डालें |
आओ साकार करें हम,
स्वप्न अभिनव भारत का,
आओ पूर्ण करें दायित्व अपना |
|| समाप्त ||
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