सरकार का विरोध करना जरुरी है
वर्तमान परिस्थितयों में किराया-वृद्धि लाजमी था लेकिन वृद्धि-दर को देखते हुए में सरकार के फैसले और कारण को बिलकुल अव्यवहारिक समझता हूँ . सर्वविदित है की डीटीसी एक बड़ी नुकसान के गर्त में जा चूका है अतः यह जरुरी था की कुछ
कदम उठाये जाय पर प्रश्न यह है की सरकार के नुकसान का कारण प्रबंधन खामियां हैं या किराया दर. जहाँ ब्लू लाइन बसें भारी मुनाफा कम रही हैं वहीँ दूसरी ओर सरकारी घाटा कैसे हो रहा है. जबकि ब्लू लाइन बसों में २०% सवारी staff चलाती हैं यानि टिकेट नहीं लेती हैं और साथ में दो नंबर का पेमेंट भी करती हैं. इसके बाबजूद वो मुनाफा में हैं. मजे की बात यह है की इन बसों के मालिक सरकारी उच्चाधिकारी और मुख्य राजनितिक पार्टियों से जुड़े लोग ही हैं अर्थात इन्हें पता है की मुनाफा कैसे होता है. अतः नुकसान के नाम पर किराये-वृद्धि का हम विरोध करते हैं.
आगामी साल राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारी में परिवहन व्यवस्था में सुधार भी अहम् एजेंडा है अतः इसलिए इस आधार पर किराया वृद्धि की जा सकती है मगर सशर्त यही है की पहेले वे अपनी प्रबंधन खामियां दूर करें. साथ ही में सरकार के किलोमीटर रेंज से सहमत नहीं हूँ और सरकार के लिए में सुझाव देना चाहूँगा की किराया कुछ इस तरह से हो - दो किलोमीटर तक किराया दो रूपये, दो से छे किलोमीटर तक पांच रूपये, छे से बारह किलोमीटर तक दस रूपये और बारह के बाद पंद्रह रूपये हो.
लेकिन सबसे मुख्य बात यह है की यदि सरकार तक हमारी बात कैसे पहुंचे और कैसे अपनी जायज मांग मनवाई जाय. इसके लिए में निम्नलिखित कदम उठाने के लिए आप सब का सहयोग चाहूँगा.
- अपने निगम-पार्षद और विधायक को इस सम्बन्ध में पत्र लिखे या सामूहिक रूप से मिले.
- बसों में यात्रा करते वक्त अपना विरोध जताने के लिए अपनी बांह पर काली पट्टी का प्रयोग करें.
- यदि आप किसी मंच और समूह से जुड़े हैं तो सामूहिक रूप से मुख्यमंत्री कार्यालय और डीटीसी महाप्रबंधक के कार्यालय व अन्य सम्बंधित कार्यालय में ज्ञापन दें.
- और वो सभी अहिंसक रास्ते जिनसे आप सरकार तक बात पहुंचा सके क्योंकि हिंसा से आखिरकार नुकसान हमें भी है पर "यदि सरकार बहरी हो तो बहरों को सुनाने के लिए धमाके की जरुरत परती है" - भगत सिंह की इस उक्ति से में बिलकुल सहमत हूँ पर यह हमारा अंतिम विकल्प है जिसकी कोई जरुरत नहीं है.
सवाल यह भी नहीं है की हम और आप कौन हैं और हम क्या कर सकते हैं. बल्कि सवाल यह है की आखिर कब तक हम चुप बैठेंगे और क्यों? क्या हम पांच साल तक बैठे रहे अपना विरोध जताने के लिए, नहीं एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए हमें सरकार की गलत नीतियों और आदेशो का विरोध करना ही होगा. इसलिए आगे आने के लिए किसी और के बजे हमें ही आगे बढ़ना होगा.
सवाल सिर्फ डीटीसी किरायों का नहीं बल्कि आज हमारे पास हरेक स्तर पर चाहे स्थानीय हो, या राज्य स्तर पर या चाहे फिर राष्ट्रीय स्तर पर, हमारे पास ऐसे ढेरों मुद्दे हैं जहाँ हम सरकार के काम-काज से खुश नहीं हैं. लेकिन हाथ पे हाथ धरे रहने के कारण ही हम इस विकट स्तिथि में पहुचें हैं जहाँ हम अपने-आप को कहीं नहीं पाते हैं.
एक प्रश्न और यह है की विरोध कौन करे. मेरी राय पर यह जिम्मेदारी भी middle क्लास की है क्योंकि निचले पायदान पर खड़े लोग जो दो जून की रोटी के लिए भी मोहताज हैं उनसे यह अपेक्षा बेमानी होगी वहीँ दूसरी ओर टॉप क्लास वालों को इन चीजों से फर्क नहीं पड़ता.
दिनांक २४/११/२००९
आप सबको हर्ष के साथ बताना चाहूँगा आख़िरकार सरकार ने अपनी stage system की गलती को सुधारते हुए ०-३ कि.मी. के range को ०-४ कि.मी. कर दिया | लेकिन दुर्भाग्य-वश पब्लिक कि support के आभाव में सरकार पर हमलोग किराया घटने के लिए आवश्यक वांछित दबाब बनाने में असफल रहे | लेकिन दोस्तों यह समाज पर ही निर्भर है कि वो किसतरह रहना चाहता है अतः निराश होने कि बजाय हम सभी लोगों को एक स्वस्थ समाज निर्माण पर ध्यान देना चाहिए जिसकी शुरुवात सबसे पहले अपने और फिर अपने परिवार से करें | एक स्वस्थ परिवार से ही स्वस्थ समाज का निर्माण होगा और फिर स्वस्थ देश का निर्माण होगा | अपने में विश्वास रखें कि हाँ! हम यह कर सकते हैं और करेंगे | यदि आपमें ऐसा करने कि हिम्मत और सोच नहीं है तो आपको कोई अधिकार नहीं है कि आप किसी के खिलाफ बोले और किसी की निंदा करें, क्योंकि वो लोग जिनसे आप परेशान है आपकी बीच का ही है और आप के ही द्वारा चुना गया है | बगैर complain किये आप नहीं कह सकते कि सुनवाई नहीं होती |
" छेद तो आसमान में भी किया जा सकता है,
देर तो सिर्फ एक पत्थर उठाकर फेंकने की है | "
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