Tuesday, November 24, 2009

प्रेरणा-गीत

दिनांक ०५/१२/2001

प्रेरणा-गीत


 
बनो अटल आदित्य नभ के,
जो सदा अडिग रहता,
अपना स्वरुप स्थिर रखता,
कभी न टलता कर्म से |
 




मत जाओ चाँद पर ,
वह है ही छलिया !
अपने रूप बदलता रोज,
कभी पूनम, कभी अमावस |




दाग मत लो शशि कि तरह,
प्रखर बनो भास्कर कि तरह,
वो भगाता भ्रम कुहासे का,
औकात दिखाता तारों को |




अरे, चांदनी है चोरी कि,
चुराया गया है सूर्य से |
चोर कि दाढ़ी में तिनका,
साबित करता हँसते सितारे |




रास्ते दिखाता प्रकृति तुम्हें,
प्रेरणा-गीत सुनाता तुम्हें,
अरे होगे सफल तुम तो,
बस बढ़ते ही जाओ |




बढ़ते ही रहो सरिता-समान,
खुद ही तलाशों पथ अपना,
पर-सुख के लिए बहो सदा,
और फिर मिलो सागर से |




पुनः, एक अनुभव लेकर,
बनो नभ के बादल,
वर्षा बन धरती पर आओ,
मिट्टी कि कसक बुझाओ |




उद्देश्य तुम्हारा है यही,
सही पथ है यही,
अपने को खोकर,
दूसरों में बस जाओ |




||समाप्त ||


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