Saturday, July 6, 2013

जान मेरी अगर तुम ये जान लेती तो जान बन कर फिर अनजान ना बनती

जब दिल टूटता है तो कविता हो ही जाती है। पर कविता की ये कीमत मेरे लिए बहुत भारी है । 


जान मेरी अगर तुम ये जान लेती 
तो जान  बन  कर  फिर अनजान  ना  बनती 



जान मेरी अगर तुम ये जान लेती 
तो जान  बन  कर  फिर अनजान  ना  बनती 

ना  कभी ये सोचा था , ना  ही यकीन था 
की कभी मुझे मेरी मल्लिका मिलेगी 
वो जो मेरी एक ख्वाब थी 
जिसे ढूंढते -२ थक गया था मैं 
ना किसी में पाया , ना किसी में था 

जान मेरी अगर तुम ये जान लेती 
तो जान  बन  कर  फिर अनजान  ना  बनती 

फिर बात चली और हवा चली 
मैं तैयार ना था, इतना समझदार न था 
बढती बात और बढती गयी 
इस बात को रोकने के लिए 
मिलने आया अनजान से 

जान मेरी अगर तुम ये जान लेती 
तो जान  बन  कर  फिर अनजान  ना  बनती 

मिलकर समझ में नहीं आया 
की क्या करूँ और कैसे इंकार करूँ 
असमंजस तो था पर दिल उछल रहा था 
तय किया की कुछ बात करते हैं 
अनजान को अब जान बना लेते हैं 

जान मेरी अगर तुम ये जान लेती 
तो जान  बन  कर  फिर अनजान  ना  बनती 

बात हुई और बात बढ़ी 
जानने-समझने का दौर चला 
हमने अपनी किताबे खोल दी 
उम्मीद तो नहीं था  पता नहीं कैसे 
अनजान  ने जान बनना स्वीकार किया 

जान मेरी अगर तुम ये जान लेती 
तो जान  बन  कर  फिर अनजान  ना  बनती 

फिर चला लम्बी बातों का दौर
जो कभी ख़त्म ही नहीं होता था 
सुनहरे दिन थे और हसीन रातें थी वो  
हर नोक-झोंक और हर अदा याद है 
मेरा गुस्सा तेरा मनाना, तुम्हारा इतराना मेरा खिसियाना 

जान मेरी अगर तुम ये जान लेती 
तो जान  बन  कर  फिर अनजान  ना  बनती 

फिर आशीर्वाद व् दुवाओं से इक सफलता मिली 
ख़ुशी इधर भी हुई और उधर भी हुई 
लेकिन हर ख़ुशी की एक कीमत होती है 
हमारा मिलन ग्रीष्म में जो था 
टल गया , शायद शरद आ जायेगा 

जान मेरी अगर तुम ये जान लेती 
तो जान  बन  कर  फिर अनजान  ना  बनती 

दो दिल जितने पास आते गए
दो परिवार उतने दूर होते गए 
डर हो रहा था हमें 
फासले ले न डूबे हमें 
पर था यकीं हमें अपने प्यार पर 

जान मेरी अगर तुम ये जान लेती 
तो जान  बन  कर  फिर अनजान  ना  बनती 

हमारे विधाताओं में तकरार हुई और होती गयी 
बात यूँ तो कुछ न थी फिर भी बात तो बात थी 
बस समझना इतना था ये रिश्ता है सौदा नहीं 
मसले तो हैं, पर ये दिल है कोई अदालत नहीं 
शख्त होना पड़ा, समाधान के लिए अड़ना पड़ा

जान मेरी अगर तुम ये जान लेती 
तो जान  बन  कर  फिर अनजान  ना  बनती 

पैदा इस फासले को पाटने के लिए 
दुरी बढ़ा दी अपने और तुम्हारे   बीच 
पर थी तो यही यथार्थ हकीकत
तुम हर पल साथ थी मेरे 
हर सपने में आती थी मेरे 

जान मेरी अगर तुम ये जान लेती 
तो जान  बन  कर  फिर अनजान  ना  बनती

तुम्हारा था एक इम्तिहान
मेरा भी था एक पैगाम
कर बुलंद अपने को इतना
सफलता चूमे मल्लिका-ए -कदम
हर पर दुआ की, दुरी पाट दे अबकी

जान मेरी अगर तुम ये जान लेती 
तो जान  बन  कर  फिर अनजान  ना  बनती 

पर मैं इस बात से था बेखबर 
तुम दूर हो रही थी मुझसे 
विश्वास की नीव और मुहब्बत के सपने
के बीच तुम्हारा बेबुनियाद शक
बढ़ता और बढ़ता जा रहा था

जान मेरी अगर तुम ये जान लेती 
तो जान  बन  कर  फिर अनजान  ना  बनती

एक संदेशा आया तेरा
हर्षित मैं इस आशा से
सदियों समान महीने
की एक-२ पल का इंतजार
बनेगा आज गुलजार

जान मेरी अगर तुम ये जान लेती 
तो जान  बन  कर  फिर अनजान  ना  बनती

पर जब बात हुई, विपरीत बात हुई
मैं हैरान था तुम्हारे रवैये से
कटीले तानों और अनबुझे प्रश्नों से
विश्वास की डोरी आखिर कट ही गयी
तुम्हारे कभी न ख़त्म होने वाले शक से

जान मेरी अगर तुम ये जान लेती 
तो जान  बन  कर  फिर अनजान  ना  बनती

मुझे जरुरत थी तुम्हारी इन हालातों में
पर तुमने कर लिया था फैसला
जुदा हो गयी थी राहें हमारी
आखिर एक समस्या जो थी तो छोटी
पर कर दिया हमें बोटी-२

जान मेरी अगर तुम ये जान लेती 
तो जान  बन  कर  फिर अनजान  ना  बनती

सम्मान तुम्हारे फैसले का करता हूँ
ए जान मेरी तुझे अनजान समझता हूँ
तू सदा खुश रहे और सलामत रहे
मेरी पहली मुहब्बत-ए -मल्लिका
तुझे आखिरी सलाम है मेरी

जान मेरी अगर तुम ये जान लेती 
तो जान  बन  कर  फिर अनजान  ना  बनती

दर्द तो रहेगा हमेशा ये
एक  सात   तेरह  को
जो एक  साथ था
वो छूट गया
अलविदा !




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