Monday, August 4, 2014

CSAT Dillema

CSAT पर अबतक का रवैया सरकार और नौकरशाही की  असमंजस को ही दर्शाता है. ये लड़ाई हिंदी-English की है ही नहीं. बल्कि मुद्दा कला और विज्ञान व् प्रबंधन के बीच है. जहाँ पहले विज्ञान व् प्रबंधन के छात्र UPSC के परीक्षा को कोसते थे क्योंकि पाठ्यक्रम में कला के छात्रों को निश्चित ही एक advantage था. वहीँ CSAT के बाद अब कला के छात्र UPSC के खिलाफ खड़े हो गए हैं. CSAT के आने के बाद  कला के छात्रों की % सफल छात्रों में तेजी से गिर गयी, वहीँ विज्ञानं व् प्रबंधन के छात्रों को निश्चित ही एक advantage है.

जहाँ तक मेरी राय है, मैं ये समझता हूँ की निश्चित ही UPSC का CSAT एक स्वागत योग्य कदम था, क्योंकि भावी प्रशासकों के निर्णय-क्षमता का आकलन करना जरुरी है. और निश्चित ही CSAT इसमें फिट बैठता है. CSAT की परीक्षा जब मैंने २०१३ में दी थी तो पाया था इनका पैटर्न बैंक के clerk exam की ही तरह था. इतनी योग्यता एक प्रशासनिक अधिकारी में तो होनी ही चाहिए. फिर क्या ये विरोध उचित है ?

बिलकुल ये विरोध लाजिमी है. क्योंकि तय समय सीमा में जहाँ विज्ञानं व् प्रबंधन के छात्र ज्यादा प्रश्न करने में निश्चित ही सफल होंगे. इस तरीके से आप प्रारंभिक स्तर पर एक विशेष विषय छात्र को रोक रहे हैं . पर सबसे ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण बात ये है की बहुत सारे विज्ञानं व् प्रबंधन के छात्र प्रारंभिक परीक्षा में सफल होने के बाद या तो मुख्य परीक्षा में बैठे ही नहीं और या असफल हो गए. इसका मतलब आप उन छात्रों को मुख्य परीक्षा के लिए चयनित कर रहे हैं, जो इनके लायक ही नहीं है या तैयार नहीं है. फिर क्या फायदा CSAT का ?

दूसरी बात जिस तरीके से अंग्रेजी-हिंदी अनुवाद किया गया, वो निश्चित ही छात्रों के भाग्य व् देश के भाग्य के साथ खिलवाड़ है.

तीसरी बात मेरा मानना ये है की UPSC कला,विज्ञानं व् प्रबंधन के विषय में बैलेंस नहीं कर पा रहा है.

तो समाधान क्या हो सकता है ?

प्रारंभिक परीक्षा का मुख्य उद्देश्य उन छात्रों को चुनना है जो वाकई मुख्य परीक्षा के योग्य हैं. अतः  पहले प्रारंभिक परीक्षा दो भागों में होनी चाहिए - १. छात्र के एक्षिक विषय २. Common test i.e. CSAT

हरेक विषय समान है इसीलिए छात्रों की योग्यता उनके विषय के आधार पर ही निर्धारित होने चाहिए. अतः CSAT के अंक जोड़े नहीं जाय, लेकिन न्यूनतम अंक प्राप्त करना अनिवार्य हो. क्योंकि जैसा मैंने पहले लिखा है भावी प्रशासकों के निर्णय-क्षमता का आकलन करना जरुरी है.

अब बात करते हैं अंग्रेजी की. मेरा मानना है की अंग्रेजी महज एक भाषा है और ये विद्वता का पैमाना नहीं है. ये दुर्भाग्यपूर्ण है की भारत में अंग्रेजी को विद्वता का पैमाने के रूप में देखा जा रहा है. अंग्रेजी सिर्फ Call-Center और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के कर्मचारी के लिए जरुरी हो सकता है लेकिन एक भावी प्रशासक को सिर्फ अंग्रेजी के कारन रोकना अनुचित है. सारे सफल छात्रों को IFS की पोस्टिंग तो देनी नहीं हैं ना.

चुकी भारत गांवों का देश है इसलिए हमें जरुरी है की हमारे भावी प्रशासक ग्रामीण-प्रबंधन में कुशल हों. चुकी एक बड़ी आबादी शहर में भी है इसलिए जरुरी है की हमारे भावी प्रशासक IT ज्ञान से भली-भांति अवगत हो. हमें जरुरत है हर भाषा के जानकर की अतः जो जितनी भाषा जानता है उतना बेहतर. और ये सब चयन के बाद एक साल के ट्रेनिंग में  किया जा सकता है और इसके लिए परीक्षा की तो जरुरत नहीं है.

सिर्फ एक चीज की परीक्षा की जरुरत है एक बार नहीं बार-२ और वो चीज है व्यक्ति की मूल्यों की, सोच की और भविष्य के सपनो की. कितना अच्छा होता यदि हम इसका test वाकई कर पाते !

निष्कर्ष में हमें हर ज्ञान वाले, हर भाषा वाले लोगों की जरुरत है, बर्शते उनमे एक नयी सोच हो, out of box thinking हो और सबसे बड़ी बात उच्च नैतिक मूल्यों वाला हो, चाहे वो एक साइंटिस्ट है या इतिहासकार , डॉक्टर है या अर्थशास्त्री , अभियंता हो या साहित्यक ............हरेक का स्वागत हो भारत के भावी-प्रशासकों की दौर में.

       

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