Monday, April 20, 2015

अंशु सचदेवा को श्रधांजलि और  तमाम जुगनुओं को समर्पित कुछ पंक्तिया


जुगनू



अमावस्या से लडती एक जुगनू,
जो उम्मीद है हर कोने की,
कि वो कोना भी रौशन होगा ,
भले ही पल दो पल के लिए |

आज वो जुगनू हार गयी है,
अपनी ही अमावस्या से ,
और भूल चुकी अपने अन्दर के जुगनू  को
और उन तमाम कोनो के विश्वास को |

या फिर मान बैठी है कि
उसकी ये जुगनू की छोटी  रौशनी ,
नाकाफी है अपनी अमावस्या के लिए,
और हर कोने तक पहुचने के लिए |

इसलिए गयी है सूरज को लाने,
या फिर पूनम की चंदा को,
ताकि फिर किसी जुगनू को,
हारना ना पड़े अपनी अमावस्या से |

लेकिन वो जुगनू भूल गयी कि ,
सूरज भी कभी एक चिंगारी ही रहा होगा,
और पूनम भी कभी अमावस्या ही रही होगी ,
लेकिन जुगनू, जुगनी ही रही होगी |

एक आशा की जुगनू , 
जो याद दिलाती है दूसरी जुगनू को,
कि तुम्हे चमकना ही होगा तब तक,
जब तक भोर ना होगी............भोर ना होगी |   

                                             - सत्येन्द्र कुमार मिश्र 'पथिक' 







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