Wednesday, January 6, 2016

आँगन

आँगन


कमरों की बढती आहटों के बीच
आँगन सिमटता और सिमटता जा रहा है|
वो आँगन जो कमरों को जोड़े रखता था
उन्हें एक परिवार का एहसास कराता था|

जहाँ हर कमरे के बच्चे साथ में खेलते थे
घर-परिवार के हर मुद्दे वहीँ तय होते थे
और चूल्हा मानों हर सुलगते मन को
खाने के पल में मीठा व् शांत कर देता था |

लोरियां, सोहर, समदाउन, मंगल सारे कोरस
उसी आँगन में गाये और सीखे जाते थे|  
अचार, पापड़, अदौड़ी, दनौड़ी, तिलौड़ी
बड़ी जन्नत से तैयार किये जाते थे   |

आँगन के बीच में एक तुलसी का पौधा था
जो माँ ही तो थी उस आँगन की और
उस आँगन के हर कमरे की और
उन कमरे के बच्चों की |

अब किसी को जरुरत नहीं है आँगन की,
बस जरुरत है ज्यादा कमरों की
ताकि किसी कमरें की privacy में
किसी और कमरें की दखलंदाजी ना हो |

अब या तो आँगन है नहीं और
आँगन है भी तो एक चूल्हा नहीं है
घर की जगह फ्लैट है और
आँगन की जगह सोसाइटी है |

सोसाइटी जो तबतक साथ है
जबतक आप सबल हैं |
उसकी दिखावे के कार्यक्रम में
हर फ्लैट का स्वागत है |

लेकिन कुल मिलकर वो आँगन नहीं है
जो छाँव देती थी हर कमरों को और
जोडके रखती तो सबको एक परिवार जैसा
तमाम मन-मुटाव और अभावों के बीच |

और तुलसी जो हर आँगन की शोभा होती थी
या तो है ही नहीं और है भी तो
बस किसी बालकनी के कोने में

किसी आँगन की याद में | 

-पथिक (०६.०१.२०१६) 

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