Tuesday, August 10, 2010

क्योंकि, मैं एक आतंकवादी हूँ !

क्योंकि, मैं एक आतंकवादी हूँ !

देखा मैंने एक सुंदर जगह,
देखकर हुआ बड़ा परेशान |
खेलते बच्चों को वहां देखा
और मेरा खून खौल उठा |

गति को मैं पसंद नहीं करता,
शांत कर देता हूँ उसे !
क्योंकि मैं एक आतंकवादी हूँ |

उड़ती चिड़ियों को देखा,
और परों को कट दिया,
धरती पर गिरा पाकर
अपार ख़ुशी पाऊं मैं |

मैं एक जेहादी हूँ,
जो खेलता होली खून से |
क्योंकि मैं एक आतंकवादी हूँ |

तैरती मछलियों को देखा,
और मैंने उसे पकड़ लिया |
वह तड़पकर मरने लगी
और मैं हँसता रहा |

मैं भी हँसता हूँ|
पर दूसरों को रुलाता हूँ |
क्योंकि मैं एक आतंकवादी हूँ |

दौड़ते मृग को देखा ,
शिकार बना वह मेरा |
करुण दृश्य था वह
पर, मैं गर्वित था |

हरे रंग को
लाल कर देता मैं |
क्योंकि मैं एक आतंकवादी हूँ |

चिट्टियों को मारना चाहा,
पर उनकी एकता ने डरा दिया,
उन्होंने मुझे कट खाया
व मैंने उसपर तेजाब दल दिया |

हार नहीं सकता मैं,
अल्लाह का सेवक मैं
क्योंकि मैं एक आतंकवादी हूँ |
मैंने एक इन्सान को देखा
उसे डराना चाहा
पर उसके तेज़ ने
मुझे डरा दिया |

मेरी भी मौत हुई
पर कोई रोया नहीं
क्योंकि मैं एक आतंकवादी हूँ |

मैं अपने आका के घर गया
मेरी जगह कोई और था
आका ने उसे भी मंत्र दिया
और आँखों में अंगार भर दिया |

वह भी मेरी तरह बन गया
उसे भी मेरी मौत मिलेगी
क्योंकि वह भी एक आतंकवादी बना है |

अब समझ गया में
क्यों बना में आतंकी ?
जेहादी के रूप में
एक हैवान बना में |

क्योंकि वह भी भड़का मेरी तरह
चल पड़ा है कहीं खून बहाने
क्योंकि वह भी एक आतंकवादी है |

पाशविक शक्तियों के सामने,
झुकता मानवता का स्वर
तीनों बड़े आतंकवादी हैं,
 ईर्ष्या - द्वेष व लोभ |

इन्हें किसी ने नहीं पहचाना
दिलों में बसाया इसे सबों ने
इसलिए सब  आतंकवादी हैं |


समाप्त

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